खबर : मलय नीरव ( malay nirav ) साहित्य जन मंथन

खबर : मलय नीरव ( malay nirav )

Malay Nirav ki kavitayen जब मैंप्रेमलिखना चाहता हूँ तबमेरी कलम वेदना लिख देती हैऔर जबमैं चाहता हूँकिलिखूँवेदना तबमेरी कलम लिख देती हैप्रेमअबइस उलझन से परेएक समझौताहो बैठा हैमैं और कलम के बीचदोनों हीउन्मुक्त होनिर्द्वन्द्वपूर्वकखबरलिख लेते हैं। मलय नीरव

शमशान (Shamshan): ममता कुमारी (Mamta Kumari) साहित्य जन मंथन

शमशान (Shamshan): ममता कुमारी (Mamta Kumari)

Shamshan : Mamta Kumari कहाँ था वो समाज?जो कहता हैकि छोटे कपड़े ही ज़िम्मेदार है!कहाँ थे वो धर्म के ठेकेदार?जो कहते हैचेहरा ढक के चलो!उस 9 साल की बच्ची नेतुम्हारे इन जुर्म के पैमानों में सेआख़िर कौन सा जुर्म किया था?बोलो?जवाब दो?क्या उसका ये जुर्म था की वो सड़कों पर आगे पढ़ें..

सब कुछ खत्म हो जाएगा एक दिन (Pavan Kumar) साहित्य जन मंथन

सब कुछ खत्म हो जाएगा एक दिन (Pavan Kumar)

Pavan Kumar: सब कुछ खत्म हो जाएगाएक दिन…शरीर तो मर गया हैआत्मा मर जाएगीएक दिन…. ये इश्क जुनून, फुलबारी काएक दिन…आहिस्ता आहिस्ता सब कुछखत्म हो जाएगाएक दिन… आंखों से पट्टी खुलेगी जबएक दिन…दिखेगी हकीकत, सपनों मेंएक दिन… जिन महलों को हमने बनाया थाएक दिन…उन्हें बेच रहा वो, मुनीम बुलाया थाएक आगे पढ़ें..

विकासमय विनाश या विनाशमय विकास ! पूजा कुमारी (Pooja Kumari) साहित्य जन मंथन

विकासमय विनाश या विनाशमय विकास ! पूजा कुमारी (Pooja Kumari)

पूजा कुमारी (Pooja Kumari): विकास को बहुरंगी, सतरंगी होना चाहिए। एकरंगी विकास एक लिए विकास हो सकता है तो दूसरे के लिए विनाश। एकरंगी विकास कब विनाश में तब्दील हो जाएगा, यह अनुमान से परे है। वैसे तो विनाश और विकास एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, लेकिन ईमानदार आगे पढ़ें..

मलय नीरव की कविताएं तड़पती मछलियाँ, बेजुबां, प्रेम-खत और जोंक साहित्य जन मंथन

मलय नीरव की कविताएं तड़पती मछलियाँ, बेजुबां, प्रेम-खत और जोंक

malay nirav ki kavitayen: १.तड़पती मछलियाँ वो लहराती जुल्फें,हसीं वादियां,वो सूखी डालियाँ,तड़पती मछलियाँ,मैं कहता था,हसीं वादियां,वो याद दिलाती थी-तड़पती मछलियाँ!! २.बेजुबां इस कहे-अनकहे दौर में,मुझ-सा इन्सान कहा,बदजुबानी से बेहतर है-बेजुबां रहना!! ३. प्रेम-खत (क) चाँद के सामने तारें,सूरज के सामने चाँद,और उनके सामने मैं,सब फीके-फीके सा हैं!!🥰 (ख) एक धूल आगे पढ़ें..

नवीन जीवन साहित्य जन मंथन

नवीन जीवन

चलो चलते हैं फिर सेजीवन की तलाश मेंकिसी अजनबी शहर कीअनजान राहों पर।चलो फिर से बटोरते हैंउन ख़्वाबों कोजो टूट कर बिखर गए थेकिसी अनजान शख्स कीबिखरी हुई याद में।चलो फिर सेउन दिलों कोधड़कना सिखाते हैं ,जो टूट कर बिखर गए थेमरती हुईइंसानियत को देखकर।चलो फिर सेनवीन जीवन कीतलाश करते आगे पढ़ें..

मैं मजदूर हूँ साहित्य जन मंथन

मैं मजदूर हूँ

सूरज की चिलचिलाती-धूप में,प्रज्ज्वलित तप-तपाती दुपहरी में,मैं बस चलता जाता हूँ । भूखे पेट,घिसते बेजान पैरों से,दृढ़-संकल्प किए,पक्के इरादों से,साथ लिए परिवारों,गठरियों को ,बिना रुके,बिना झुके, अविचल,मैं बस चलता जाता हूँ । मैंने बहु-मंजिला इमारतों,स्मारकों,बगीचों ,फब्बारों को तराशें हैं।अपने ही पसीने से बनाये सड़कों परअपने ही शहर में बेगाना हूँ आगे पढ़ें..

हिन्दी-दिवस नहीं, हर दिवस हिन्दी! साहित्य जन मंथन

हिन्दी-दिवस नहीं, हर दिवस हिन्दी!

खुसरो की हिन्दी,मीर-तुलसी-कबीर की हिन्दी!!! भारतेन्दु की हिन्दी,पन्त-प्रसाद-निराला-वर्मा की हिन्दी!!! प्रेमचंद की हिन्दी,अज्ञेय-यशपाल-भंडारी-सोबती की हिन्दी!!! भोजपुरी की हिन्दी,मैथिली-राजस्थानी-गढ़वाली-अंगिका की हिन्दी!! मजदूर की हिन्दी,राजनेता-अभिनेता-पत्रकार-डॉक्टर की हिन्दी! अखब़ार-सिनेमा-नाटक-पत्रिका की हिन्दी,फ़िर काहे न रोजगार की हिन्दी!!! हिन्दी-दिवस नहीं,हर दिवस हिन्दी!!! पूजा कुमारीबीएड, छात्रा, दिल्ली विश्वविद्यालय

मजदूर साहित्य जन मंथन

मजदूर

इधर उधर फैक्ट्री में वह ,दिन रात काम करता ,साल भर खून पसीने से कमाता,फिर भी कुछ नही पाता ।मालिक से पैसा कमा खाता,संकट में सड़कों पर मर जाता ।“मजदूर” की दुःखद कहानी,आज दुनिया को सुनाता हूं ।पसीने में तन भिगोकर ,फैक्ट्री में धन जमाता ,देश की अर्थव्यवस्था चलाता ,फिर आगे पढ़ें..

फराओ और बुद्ध - दीपक जायसवाल साहित्य जन मंथन

फराओ और बुद्ध – दीपक जायसवाल

मिस्र के फराओअपने ऐश्वर्य को बनाए रखने के लिएमृत्यु के बाद कीदुनिया के लिए भीसोने चाँदी अपने क़ब्रों में साथ ले गएदफ़नाएँ गये हज़ारों-हजार ग़ुलामजीते-जीकि राजा जब अपनी कब्र में होकि जब कभी इक रोजफिर जी उठे तोउसके पैर धूल-धूसरित न हो। ईसा पूर्व में हीकपिलवस्तु में भी एक राजा आगे पढ़ें..