लिख लेता हूँ साहित्य जन मंथन

लिख लेता हूँ

हर रोज कलम उठा लेता हूँ,दर्द कहता नहीं लिख लेता हूँजब जब उठती हैं यदों की लहरें,अपने दिल को समझा लेता हूँ, दर्द कहता नहीं लिख लेता हूँ..पलकों के बन्धन में बांध लेता हूँआंख मूंद तस्वीर बना लेता हूँ,वो बन उच्छवास छिपते मेरी सांसों में, देख उन्हें सांसें थाम लेता आगे पढ़ें..

मंजिल बस घर तक साहित्य जन मंथन

मंजिल बस घर तक

आँखों की आस है कि,अपनो का दीदार हो जाए।लेकिन माथे की शिकन में,देश के पहरेदारो का खौफ़नज़र आ रहा हैं। कदमों की आहट भी,शोर मचा रही है।सुनसान सड़कें भी,कोरोना-कोरोना चिल्ला रही है। शेहरो के सेवादारों की,आज शामें यू गुज़रती है।एक वक्त की रोटी को,उनकी आँखें तरसती हैं। हर कदम चलना,बीमारी आगे पढ़ें..

अभी नही देखा साहित्य जन मंथन

अभी नही देखा

सिर को झुकते देखा है,पर झुकाते नहीं देखाअभी अपनापन देखा है,परायापन नहीं देखाअभी प्यार देखा है,नफरत नहीं देखीअभी दोस्ती देखी है,दुश्मनी नहीं देखीअभी इज्जत देते हुए देखा है,बेइज्जती नहीं देखीसब कुछ पाते हुए देखा है,सब कुछ खोते हुए नहीं देखासबको साथ देते देखा है,अकेलापन नहीं देखामेरी खामोशी देखी है,मुझे ज्वालामुखी आगे पढ़ें..

एकदिन ऐसा फिर आएगा साहित्य जन मंथन

एकदिन ऐसा फिर आएगा

प्रकृति सचेत कर रही है,बार बार यह संकेत दे रही है।मनुष्य कराह रहा हैफिर भी,असावधानी बरते जा रहा है। असावधानी से कोरोना बढ़ जाएगाये जानते हुए भी,इतनी कर्तव्य विमुखता क्यूँ? पशु, पक्षी, फूल, पत्तीसब है तुम्हारे हितैषीयह जानते हुए भी,इतनी कठोरताक्या नहीं बची अब तुममे मानवता? थोड़ा सा संघर्ष और आगे पढ़ें..

सुबह की जल्दबाजी साहित्य जन मंथन

सुबह की जल्दबाजी

कोरोना के कारण सभी अपने घरों में हैंहम भी अपने घर पर रह लेते हैं।घर में सुबह की जल्दबाजी नहीं हैहर सुबह एक मुस्कुराहट और जादू की झप्पी हैजरुरी नहीं देर से ही उठना हैथोड़ा जल्दी उठकर व्यायाम कर लेते हैं,पापा का सुबह जल्दी काम पर निकल जाना।ठीक है! अब आगे पढ़ें..

पृथ्वी की गोद में साहित्य जन मंथन

पृथ्वी की गोद में

बनी रहे साफ स्वच्छ निर्मलधरा हम सभी की।ये पृथ्वी हमसे नहीं,हम पृथ्वी से हैं । चायनीज वायरसआज अवसर है एक।कि जानें हम अपनी सीमाएं,तय करें अपनी रेखाएं। सीमित संसाधनों कान्यूनतम उपभोग कर सकें,इस जीवन की अवधि कोदुगुना कर सकें। प्रकृति की मनोरम गोद में,सांस लें खुले आसमान में,विचरें खुली जमीन आगे पढ़ें..

कोरोना को हराना है साहित्य जन मंथन

कोरोना को हराना है

“कोरोना को हराना है”आ गयी मुश्किल घड़ी,,,जीत के हमको दिखाना है ।।आज हमने ठाना है,,,कोरोना को हराना है ।। मोदी जी ने कर दिखाया,,,अब अपनी बारी है ।।राष्ट्रभक्ति दिखानी है,,,हिन्दुस्तान को विजयी बनाना है ।। देश की रक्षा के लिए,,,जिन्होंने दिया बलिदान है ।।ऐसी माताओं के बच्चों समक्ष,,,श्रद्धा से शीश आगे पढ़ें..

तुम्हे भूल नही पायेंगे साहित्य जन मंथन

तुम्हे भूल नही पायेंगे

तुम्हे भूल नही पायेंगेतुम्हे भूल नही पायेंगेपहले-सा कभी फिर शायदतुमसे जुड़ नही पायेंगे…हमें याद आएगा हर वक्तहर कदम पर हर जख्मसर पे बोझ लिए नापे हुए डगरलड़खड़ाये भी थे और सुस्ताये भीपर आँखों में आंसू लिए हारे नहीहरपल हर पग सहते रहे बढ़ते रहेतुम्हे भूल नही पायेंगे…अपने हित में बेघर आगे पढ़ें..

कोरोना साहित्य जन मंथन

कोरोना

तू रख खुदऔर ईश्वर पर विश्वास!शीघ्र ही होगाकोरोना का विनाशविषाणु मुक्त मेरा भारत बनेगा।कोरोना हारेगा, भारत जीतेगा। ना घबरा भारतीय!जिस मिट्टी में जन्मे कृष्ण रामवहाँ कैसे रहेगाकोरोना का नामखुशियों के फूल से भारत खिलेगा।कोरोना हारेगा , भारत जीतेगा। कसम खाई हमनेंघर मे रहकर लड़ेंगे जंगएक दिन ऐसा आएगाभारत मे जीत आगे पढ़ें..

उसने कहा मुझसे साहित्य जन मंथन

उसने कहा मुझसे

उसने कहा मुझसे –कोरोना पर लिखो.मैंने फासलों पर लिख दिया,फासला होगा तोकोरोना नहीं होगा ! उसने कहा मुझसे –अत्याचार पर लिखो.मैंने प्रेम पर लिख दिया,जहां प्रेम होता हैवहाँ अत्याचार कम होता है. उसने कहा मुझसे –भगवान पर लिखो.मैंने गुरु पर लिख दिया,बलिहारी गुरु आपकीजिन गोविंद दियो बताय ! उसने कहा आगे पढ़ें..