ज़रा याद करें। साहित्य जन मंथन

ज़रा याद करें।

आओ मिलकर विचारों की ज़रा आग जलाए। डूब रही है जो देश की हस्ती ज़रा उसको रोशनाए। मर मिटे है जो अपने देश के लिए ज़रा उनकी याद सब को मिल करवाएं। जो कहते हैं यौवन आता है एक बार मस्ती का। ज़रा उनको भगत सिंह के आज तक गूंजते आगे पढ़ें..

बचपन की यादें साहित्य जन मंथन

बचपन की यादें

कुछ सुनहरे पल जिए थे मैंनेहां बचपन के वो पल जिए थे मैंने।। बरसात के पानी में कागज की किश्तियां चलाई थी मैंने,गलियों में स्टापू और छुपन छुपाई खेली थी मैंने ,जहां बात- बात पर तू तू मैं मैं  थीसुबह शाम बस वही हकीकत  थी ,वह चबूतरा हमारा अड्डा  था आगे पढ़ें..

एक अनुक्त दर्द साहित्य जन मंथन

एक अनुक्त दर्द

उसे बंदिशों में बाँध दिया गया.., उसे बेड़ियों से जकड़ दिया गया, लेते रहे परीक्षा पर परीक्षा…., वो रोती बिलखती सिसकती रही, ज़िन्दा लाश बनकर चलती रही, सबने उसे अपने हिसाब से नाम दिया- किसी ने भाग्य की मारी कहा… किसी ने रूप की मारी कहा…. किसी ने रंग की आगे पढ़ें..

तुझे देखा जी भर के, साहित्य जन मंथन

तुझे देखा जी भर के,

तुझे देखा जी भर के, कुछ आस आये, वक्त मिले तू तो मेरे पास आये। उल्फ़तों में दिन गुज़रता है, फिर भी शिकायत नहींआती, कैसे समझाऊं तेरा होना, मुझे रास आये। तुम्हारी हज़ार ख़्वाहिशें मैं पूरी करूँ, मेरी इतनी-सी मन्नत है दोस्त, फिर-फिर से कोई नया साल आये और तू आगे पढ़ें..