नवीन जीवन साहित्य जन मंथन

नवीन जीवन

चलो चलते हैं फिर सेजीवन की तलाश मेंकिसी अजनबी शहर कीअनजान राहों पर।चलो फिर से बटोरते हैंउन ख़्वाबों कोजो टूट कर बिखर गए थेकिसी अनजान शख्स कीबिखरी हुई याद में।चलो फिर सेउन दिलों कोधड़कना सिखाते हैं ,जो टूट कर बिखर गए थेमरती हुईइंसानियत को देखकर।चलो फिर सेनवीन जीवन कीतलाश करते आगे पढ़ें..

मैं मजदूर हूँ साहित्य जन मंथन

मैं मजदूर हूँ

सूरज की चिलचिलाती-धूप में,प्रज्ज्वलित तप-तपाती दुपहरी में,मैं बस चलता जाता हूँ । भूखे पेट,घिसते बेजान पैरों से,दृढ़-संकल्प किए,पक्के इरादों से,साथ लिए परिवारों,गठरियों को ,बिना रुके,बिना झुके, अविचल,मैं बस चलता जाता हूँ । मैंने बहु-मंजिला इमारतों,स्मारकों,बगीचों ,फब्बारों को तराशें हैं।अपने ही पसीने से बनाये सड़कों परअपने ही शहर में बेगाना हूँ आगे पढ़ें..

फराओ और बुद्ध - दीपक जायसवाल साहित्य जन मंथन

फराओ और बुद्ध – दीपक जायसवाल

मिस्र के फराओअपने ऐश्वर्य को बनाए रखने के लिएमृत्यु के बाद कीदुनिया के लिए भीसोने चाँदी अपने क़ब्रों में साथ ले गएदफ़नाएँ गये हज़ारों-हजार ग़ुलामजीते-जीकि राजा जब अपनी कब्र में होकि जब कभी इक रोजफिर जी उठे तोउसके पैर धूल-धूसरित न हो। ईसा पूर्व में हीकपिलवस्तु में भी एक राजा आगे पढ़ें..

एक जुट हो रहा समाज साहित्य जन मंथन

एक जुट हो रहा समाज

चाइनीज वायरस के प्रकोप से जहाँ सम्पूर्ण विश्व त्राहि त्राहि कर रहा है, वहीं भारत भी इससे अलग नहीं रह सका, देर से ही सही लेकिन इस महामारी ने भारत में भी अपने पैर जमाये हैं, परंतु भारतीय प्रशासन और समाज की सजग भागीदारी द्वारा इस चाइनीज वायरस से छुटकारा आगे पढ़ें..

सोशल मीडिया और युवा साहित्य का लेखन साहित्य जन मंथन

सोशल मीडिया और युवा साहित्य का लेखन

आज का साहित्य और उसका चिंतन नई सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के कारण पहले के साहित्य और उसके चिंतन से कई मायनों में बदल गया है।  चिंतन की जगह सूचनाएं इनके औज़ार हैं। नई पीढ़ी बदले हुए सामाजिक समूहों को आधार बनाकर नया साहित्य रच रही है जो तकनीक के बदले नए आगे पढ़ें..

अंतरराष्ट्रीय शांति के मार्ग में ड्रैगन का अतिक्रमण साहित्य जन मंथन

अंतरराष्ट्रीय शांति के मार्ग में ड्रैगन का अतिक्रमण

हाल ही में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गलवान घाटी में अतिक्रमण को लेकर भारत और चीन के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों में गहरा तनाव व्याप्त है। दोनों देश कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर इस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास कर रहे है। आगे पढ़ें..

डिअर डायरी साहित्य जन मंथन

डिअर डायरी

डिअर डायरी , कैसी हो ? काफी दिन बाद मिल रहें है……… जब से लॉकडाउन हुआ है| तुम्हारी और मेरी बाते कम हो गई है , रोज़ नया कुछ लाए तो लाए कहाँ से वही कोरोंना की खबरों ने घर-संसार को घेरा हुआ है| अगर कॉलज जाते तो बताते आज कैन्टीन में आगे पढ़ें..

लिख लेता हूँ साहित्य जन मंथन

लिख लेता हूँ

हर रोज कलम उठा लेता हूँ,दर्द कहता नहीं लिख लेता हूँजब जब उठती हैं यदों की लहरें,अपने दिल को समझा लेता हूँ, दर्द कहता नहीं लिख लेता हूँ..पलकों के बन्धन में बांध लेता हूँआंख मूंद तस्वीर बना लेता हूँ,वो बन उच्छवास छिपते मेरी सांसों में, देख उन्हें सांसें थाम लेता आगे पढ़ें..

मंजिल बस घर तक साहित्य जन मंथन

मंजिल बस घर तक

आँखों की आस है कि,अपनो का दीदार हो जाए।लेकिन माथे की शिकन में,देश के पहरेदारो का खौफ़नज़र आ रहा हैं। कदमों की आहट भी,शोर मचा रही है।सुनसान सड़कें भी,कोरोना-कोरोना चिल्ला रही है। शेहरो के सेवादारों की,आज शामें यू गुज़रती है।एक वक्त की रोटी को,उनकी आँखें तरसती हैं। हर कदम चलना,बीमारी आगे पढ़ें..

अभी नही देखा साहित्य जन मंथन

अभी नही देखा

सिर को झुकते देखा है,पर झुकाते नहीं देखाअभी अपनापन देखा है,परायापन नहीं देखाअभी प्यार देखा है,नफरत नहीं देखीअभी दोस्ती देखी है,दुश्मनी नहीं देखीअभी इज्जत देते हुए देखा है,बेइज्जती नहीं देखीसब कुछ पाते हुए देखा है,सब कुछ खोते हुए नहीं देखासबको साथ देते देखा है,अकेलापन नहीं देखामेरी खामोशी देखी है,मुझे ज्वालामुखी आगे पढ़ें..