डिअर डायरी

डिअर डायरी साहित्य जन मंथन

डिअर डायरी ,

कैसी हो ? काफी दिन बाद मिल रहें है………

जब से लॉकडाउन हुआ है| तुम्हारी और मेरी बाते कम हो गई है , रोज़ नया कुछ लाए तो लाए कहाँ से वही कोरोंना की खबरों ने घर-संसार को घेरा हुआ है| अगर कॉलज जाते तो बताते आज कैन्टीन में क्या खाया और क्लास छोड़ कर कहाँ घूम कर आए| क्लास के बाद घंटों दोस्तों के साथ बाते होती रही और खाली पीरीअड में कैसे घंटों ग्राउन्ड में बैठ कर कॉलेज पंचायत चली | मेट्रो से आते जाते वक्त क्या-क्या देखा? रिक्शे वाले भैया ने कैसे दूसरे रिखसे वाले भैया से रेस लगाई| कॉलेज सभागार में नया क्या देखने को मिला| कौन-से सेमिनार का आयोजन आने वाले हफ्ते में होने वाला है| हमारा विभाग क्या नया करने वाला है| कॉलेज मे कौन-कौन सी नई गतिविधियाँ हो रही है |

लेकिन ये भी अलग अनुभव है

उस व्यस्त जीवन मे खुद को भूलते जा रहे थे

जो थे नहीं वो बनते जा रहे थे

जन्मे तो इंसान ही थे

मशीन बनते जा रहे थे

पता है वो लाइब्रेरी वाली शांति पहली बार देखी हमने लाइब्रेरी के अलावा कहीं| अब पक्षियों की आवाज़े सुनाई देती है सिर्फ सुबह नहीं बल्कि पूरा दिन| घर रहते हुए जाना की वो कॉलेज जिसे गुस्से में बुरा कह दिया करते थे वो दूसरा घर था और उसके बिना जीवन कितना अधूरा है| वो दोस्तों को चिड़ाना याद आा रहा है अब कॉलेज जाने की जल्दी नहीं होती| वो कॉलेज की गिलहेरियाँ उन्हे कौन खाना देता होगा और वो सभी पेड़-पौधे उन्हे कौन पानी उन्हे कौन पनि दे रहा होगा वो सही कुत्ते वो भी न जाने कैसे रह रहे होंगे| कैंटीन वाले भईया उनका गुज़ारा कैसे हो रहा होगा| कॉलेज के नॉन-टीचिंग स्टाफ वाले सभी कैसे घर चला रहा होंगा| मुझे याद है उन्ही में से एक आंटी ने बताया था की इतनी कम तनख्वा में घर चलाना मुश्किल होता है और ब तो उन्हे कुछ भी नहीं मिल रही होगी तो वो कैसे रहती होंगी |

डिअर डायरी तुम्हें पता है ना परिवार के साथ ऐसे, वक्त बचपन में बिताती थी = वो भी गर्मियों की छुट्टियों में, लेकिन जब भी माँ-पापा को वक्त ही नहीं होता था| दोनों के काम मे हमारी गिनती ही नहीं थी और ना ही ऑफिस का हम कोई काम थे जो दिन रात उनका सारा ध्यान हम पर रहता,ऐसे वक्त में मुझे समझने वाली तुम ही तो थी डीयर डायरी; लेकिन तुम्हें पता है बीते एक महीने से वो मेरा ख्याल रखते है अपने ऑफिस की तरह| घर में हमारा खाना बनाने वाली दीदी नहीं आ रही है कभी माँ कभी पापा बारी-बारी बना रहें है मेरा पसंदीदा खाना और अब मोका मिल ही रहा है तो मैं भी रोज कुछ अलग खाने को कह देती हूँ| वैसे अब खाना कभी-कभी देर से बन रहा है क्योंकि वो दोनों ही घर के काम करने के आदि नहीं है तो हर काम के बाद दूसरा काम एक-दूसरे पर डालने लगते हैं| वैसे अब मेरे साथ रहने की कोई समय सीमा नहीं है उनकी जैसे ऑफिस के साथ रहने की नहीं होती थी, हम साथ बैठ कर घंटों बाते करते है किसी आधिकारिक मुलाकात की तरह, कल माँ ने पहली बार पूछा की मुझे क्या करना पसंद है मेरी रुचिया जानना चाहती थी, इससे पहले तक उन्होंने मुझे बताया ही था की उनके सहकारियों के बच्चे क्या-क्या करते है? ऐसे मे मेरी रुचियों से ज्यादा ज़रूरी होता था अपना वर्चस्व बनाए रखना| माँ के साथ पापा भी थे उन्होंने भी मोके पर चोका मारते हुए प्रश्न किया की कॉलज के बाद मैनें क्या करने का सोचा है | तुम्हें तो पता ही है की आज से पहले तक वो बस मुझे बताते ही थे “क्या विषय पढ़ने है? कैसे पढ़ने है? कितने अंक लाने है?” मेरा कॉलज भी तो उनकी पसंद का ही था ऐसे में उनका ये प्रश्न संभव हुआ है सिर्फ लॉकडाउन की वजह से डिअर डायरी तुम बुरा मत मानना पर बाते अब माँ-पापा से ज्यादा हो रही है तो तुमसे कम हो गई है लेकिन ये ज्यादा वक्त के लिए ही है जल्द सब पहले जैसा हो जाएगा फिर सब अपने दैनिक कार्यों में लग जाएंगे और फिर से तुम ही रहोगी एक मात्र मेरे पास

छाया गौतम

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