विकासमय विनाश या विनाशमय विकास ! पूजा कुमारी (Pooja Kumari)

विकासमय विनाश या विनाशमय विकास ! पूजा कुमारी (Pooja Kumari) साहित्य जन मंथन

पूजा कुमारी (Pooja Kumari): विकास को बहुरंगी, सतरंगी होना चाहिए। एकरंगी विकास एक लिए विकास हो सकता है तो दूसरे के लिए विनाश। एकरंगी विकास कब विनाश में तब्दील हो जाएगा, यह अनुमान से परे है। वैसे तो विनाश और विकास एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, लेकिन ईमानदार प्रयास और प्रकृति का सम्मान करते हुए इन्सान विकास को चित वाले हिस्से पर बनाए रख सकता है। अनुशासन और तानाशाही, स्वच्छंदता और अराजकता या विकास और विनाश ये सभी जोड़े एक महीन दीवार द्वारा एक दूसरे से पृथक होते हैं। कब कूद-फांद कर एक दूसरे से मिल जाते इसको जान पाना असंभव तो नहीं लेकिन मुश्किल जरूर है।

कल्पनाओं के आकाश में
विचारों के क्षितिज पर
क्यों आजकल उमड़-घुमड़ रहें हैं
विकास और विनाश !


गति ही जीवन है
लेकिन क्या गतिहीन होना भी जीवन है !

मार्च 2020 का समय था,
थे हम गतिहीन,
लेकिन हमारी गतिहीनता किसी के जीवन में
उत्साह का संचार कर रही थी।

सड़कें शान्त थी,
लेकिन आसमां था उन्मुक्त पंछी से भरा।
सागर से नौका गायब थी,
पर मछलियाँ थी गतिशील।

शान्त सड़क, चंचल आसमान
एक जगह थी गतिहीनता तो दूसरी जगह गतिशीलता।
लेकिन कहीं था पेट भी खाली,
फ़िर कहाँ है जीवन ?
गतिशीलता में या गतिहीनता में !

चमचमाती कारें देख
फैलती आंखें
फ़िर,
फुटपाथ पर सोता देह देख
सिकुड़ती आंखें
क्या यही है विकास !

साफ़ आसमान, बन्द फैक्ट्रियाँ
गन्दला आसमान,खुली फैक्ट्रियाँ
हरा-भरा जंगल, घास पर पदचाप
कटे पेड़, इठलाती सड़कें
क्या है विकास, क्या है विनाश ?

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