अपना अपना भाग्य कहानी की मार्मिकता

अपना अपना भाग्य कहानी की मार्मिकता साहित्य जन मंथन

Apna Apna Bhagya kahani ki Marmikta – जैनेन्द्र कुमार

जैनेन्द्र कुमार – जन्म: 2 जनवरी, 1905

मृत्यु: 24 दिसम्बर, 1988

हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कथाकार, उपन्यासकार तथा निबंधकार थे। ये हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक के रूप में मान्य हैं। जैनेन्द्र अपने पात्रों की सामान्यगति में सूक्ष्म संकेतों की निहिति की खोज करके उन्हें बड़े कौशल से प्रस्तुत करते हैं। उनके पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ इसी कारण से संयुक्त होकर उभरती हैं।
जीवन परिचय
प्रसिद्ध विचारक, उपन्यासकार, मनोवैज्ञानिक, कथाकार तथा निबन्धकार जैनेन्द्र कुमार जैन का जन्म सन् 1904 में जिला अलीगढ़ के कौड़ियागंज नामक स्थान में हुआ था। जन्म के दो वर्ष के पश्चात् ही इनके पिता प्यारेलाल का स्वर्गवास हो गया। इनकी माता रामदेवी तथा मामा भगवानदीन ने इनका पालन-पोषण किया। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल में हुई। मैट्रिक की परीक्षा इन्होंने पंजाब से उत्तीर्ण की । जैनेन्द्र की उच्च शिक्षा काशी विश्वविद्यालय में हुई। 1921 में पढ़ाई छोड़कर ये असहयोग आन्दोलन में शामिल हो गये। दो वर्ष तक इन्होंने अपनी माता की सहायता से व्यापार किया जिसमें इन्हें सफलता भी मिली। पर इनकी रुचि लेखन की ओर ही अधिक थी। नागपुर में इन्होंने राजनीतिक पत्रों में संवाददाता के रूप में भी कार्य किया। उसी वर्ष तीन माह के लिए इन्हें गिरफ्तार किया गया। दिल्ली वापस लौटकर इन्होंने व्यापार से स्वयं को अलग कर लिया। इनकी पहली कहानी ‘खेल’ ‘विशाल भारत’ में प्रकाशित हुई। इसने इन्हें रातोंरात प्रसिद्ध कहानीकार बना दिया। 1929 में इनका पहला उपन्यास ‘परख’ प्रकाशित हुआ जिस पर इन्हें हिन्दुस्तान अकादमी का पुरस्कार भी मिला। 1988 में इस अमर साहित्यकार का निधन हो गया।

प्रमुख कृतियाँ-

उपन्यास  – ‘परख’ (1929) ‘सुनीता’ (1935) ‘त्यागपत्र’ (1937) ‘कल्याणी’ (1939) ‘विवर्त’ (1953) ‘सुखदा’ (1953) ‘व्यतीत’ (1953) ‘जयवर्धन’ (1956)
कहानी संग्रह – ‘फाँसी’ (1929) ‘वातायन’ (1930) ‘नीलम देश की राजकन्या’ (1933) ‘एक रात’ (1934) ‘दो चिड़ियाँ’ (1935) ‘पाजेब’ (1942) ‘जयसंधि’ (1949) ‘जैनेन्द्र की कहानियाँ’ (सात भाग)
निबंध संग्रह –‘प्रस्तुत प्रश्न’ (1936) ‘जड़ की बात’ (1945) ‘पूर्वोदय’ (1951) ‘साहित्य का श्रेय और प्रेय’ (1953) ‘मंथन’ (1953) ‘सोच विचार’ (1953) ‘काम, प्रेम और परिवार’ (1953) ‘ये और वे’ (1954)
अनूदित ग्रंथ – ‘मंदालिनी’ (नाटक-1935) ‘प्रेम में भगवान्’ (कहानी संग्रह-1937) ‘पाप और प्रकाश’ नाटक-1953)।
सह लेखन – ‘तपोभूमि’ (उपन्यास, ऋषभचरण जैन के साथ-1932)।
संपादित ग्रंथ –‘साहित्य चयन’ (निबंध संग्रह-1951) ‘विचारवल्लरी’ (निबंध संग्रह-1952)

हिन्दी साहित्य में स्थान – 

जैनेन्द्र कुमार का हिन्दी साहित्य में विशेष स्थान है। जैनेन्द्र पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने हिन्दी गद्य को मनोवैज्ञानिक गहराइयों से जोड़ा। जिस समय प्रेमचन्द सामाजिक पृष्ठभूमि के उपन्यास और कहानियाँ लिख कर जनता को जीवन की सच्चाइयों से जोड़ने के काम में महारथ सिद्ध कर रहे थे, जब हिन्दी गद्य ‘प्रेमचन्द युग’ के नाम से जाना जा रहा था, तब उस नयी लहर के मध्य एक बिल्कुल नयी धारा प्रारम्भ करना सरल कार्य नहीं था। आलोचकों और पाठकों की प्रतिक्रिया की चिन्ता किये बिना, कहानी और उपन्यास लिखना जैनेन्द्र के लिये कितना कठिन रहा होगा, इसका अनुमान किया जा सकता है। बहुत से आलोचकों ने जैनेन्द्र के साहित्य के व्यक्तिनिष्ठ वातावरण और स्वतंत्र मानसिकता वाली नायिकाओं की आलोचना भी की परंतु व्यक्ति को रूढ़ियों, प्रचलित मान्यताओं और प्रतिष्ठित संबंधों से हट कर देखने और दिखाने के संकल्प से जैनेन्द्र विचलित नहीं हुए। जीवन और व्यक्ति को बँधी लकीरों के बीच से हटा कर देखने वाले जैनेन्द्र के साहित्य ने हिन्दी साहित्य को नयी दिशा दी जिस पर बाद में हमें अज्ञेय चलते हुए दिखाई देते हैं।

प्रेमचन्द साहित्य के पूरक – 
मनुष्य का व्यक्तित्व सामाजिक स्थितियों और भीतरी चिंतन-चिंताओं से मिल कर बनता है। दोनों में से किसी एक का अभाव उसके होने को खंडित करता है। इस दृष्टि से जैनेन्द्र, प्रेमचन्द युग और प्रेमचन्द साहित्य के पूरक हैं। प्रेमचन्द के साहित्य की सामाजिकता में व्यक्ति के जिस निजत्व की कमी कभी- कभी खलती थी वह जैनेन्द्र ने पूरी की। इस दृष्टि से जैनेन्द्र को हिन्दी गद्य में ‘प्रयोगवाद’ का प्रारम्भकर्ता कहा जा सकता है। उनके प्रारम्भ के उपन्यासों ‘परख’ (1929), ‘सुनीता'(1935) और ‘त्यागपत्र’ (1937) ने वयस्क पाठकों को सोचने के लिए बहुत सी नयी सामग्री दी। ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ में गोपाल राय जी लिखते हैं ‘उनके उपन्यासों की कहानी अधिकतर एक परिवार की कहानी होती है और वे ’शहर की गली और कोठरी की सभ्यता’ में ही सिमट कर व्यक्ति-पात्रों की मानसिक गहराइयों में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं।’ जैनेन्द्र के पात्र बने-बनाये सामाजिक नियमों को स्वीकार कर, उनमें अपना जीवन बिताने की चेष्टा नहीं करते अपितु उन नियमों को चुनौती देते हैं। यह चुनौती प्राय: उनकी नायिकाओं की ओर से आती है जो उनकी लगभग सभी रचनाओं में मुख्य पात्र भी हैं। सन् 1930-35 या 40 में स्त्रियों का समाज की चिन्ता किये बिना, विवाह संस्था के प्रति प्रश्न उठाना स्वयं में नयी बात थी।

जैनेन्द्र के पात्रों का व्यक्तित्त्व –
जैनेन्द्र के पात्रों में यह शंका, उलझन दिखाई देती है कि स्त्रियाँ संबंधों की मर्यादा में रहते हुए भी स्वतंत्र व्यक्तित्त्व बनाए रखना चाहती हैं जो नि:संदेह भारतीय परिवेश में आज, यानी जैनेन्द्र के इन उपन्यासों के समय के 60-70 वर्ष बाद भी यथार्थ नहीं है जैनेन्द्र जानते थे कि वह जिस नारी स्वतंत्रता के विषय में सोच रहे हैं, वह एक दुर्लभ वस्तु है। समाज के स्वीकार और प्रतिक्रिया के प्रश्नों से वे भी उलझे थे इसलिये वे प्रश्नों को उठाते तो हैं किन्तु उनका उत्तर स्पष्ट रूप से नहीं देते बल्कि कहानी को एक मोड़ पर लाकर छोड़ देते जहाँ से पाठक की कल्पना और भाव-बुद्धि अपने इच्छानुसार विचरती है। बहुधा यह स्थिति खीज भी उत्पन्न करती थी विशेषकर उस समय में, जब ये उपन्यास लिखे गये थे। प्रेमचन्द के उपन्यासों में समस्याओं का प्राय: समाधान हुआ करता था, उस समय एक भिन्न प्रकार की समस्या उठा कर, बिना निदान दिए, छोड़ देना निस्संदेह एक नई शुरूआत थी।

उनके उपन्यासों- ‘कल्याणी’, ‘सुखदा’, ‘विवर्त’, ‘व्यतीत’, ‘जयवर्धन’ आदि में उनके स्त्री-पात्र समाज की विचारधारा को बदलने में असमर्थ होने के कारण अन्तत: आत्मयातना के शिकार बनते हैं यह आत्मयातना उनके जीवन दर्शन का एक अंग बन जाती है। उनमें समाज से अलग हट कर अपने अस्तित्व को ढूँढने का आत्मतोष तो है किन्तु उस स्वतंत्र अस्तित्व के साथ रह न पाने की निराशा भी है। जैनेन्द्र के उपन्यासों ने निस्संदेह साहित्यिक विचारधारा और दर्शन को नई दिशा दी अज्ञेय के उपन्यास इसी दिशा में आगे बढ़े हुए लगते हैं।

जैनेन्द्र की कहानियों में भी हमें यह नई दिशा दिखाई देती है। आलोचकों का मानना है कि ‘उन्होंने कहानी को ’घटना’ के स्तर से उठाकर ’चरित्र’ और ’मनोवैज्ञानिक सत्य’ पर लाने का प्रयास किया। उन्होंने कथावस्तु को सामाजिक धरातल से समेट कर व्यक्तिगत और मनोवैज्ञानिक भूमिका पर प्रतिष्ठित किया।’ चाहे उनकी कहानी ‘हत्या’ हो या ‘खेल’, ‘अपना-अपना भाग्य’, ‘बाहुबली’, ‘पाजेब’, ध्रुवतारा, ‘दो चिड़ियाँ’ आदि सभी कहानियों में व्यक्ति-मन की शंकाओं, प्रश्नों को प्रस्तुत करती हैं।

कहा जा सकता है कि जैनेन्द्र के उपन्यासों और कहानियों में व्यक्ति की प्रतिष्ठा, हिन्दी साहित्य में नई बात थी जिसने न केवल व्यक्ति और समाज के पारस्परिक संबंध नई व्याख्या की बल्कि व्यक्ति मन को उचित महत्ता भी दिलवाई। जैनेन्द्र के इस योगदान को हिन्दी साहित्य कभी नहीं भूल सकता।

सम्मान और पुरस्कार – 
हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कार, 1929 में ‘परख’ (उपन्यास) के लिए भारत सरकार शिक्षा मंत्रालय पुरस्कार, 1952 में ‘प्रेम में भगवान्’ (अनुवाद) के लिए 1966 में साहित्य अकादमी पुरस्कार ‘मुक्तिबोध’ (लघु उपन्यास) के लिए पद्म भूषण, 1971 साहित्य अकादमी फैलोशिप, 1974 हस्तीमल डालमिया पुरस्कार (नई दिल्ली) उत्तर प्रदेश राज्य सरकार (समय और हम-1970) उत्तर प्रदेश सरकार का शिखर सम्मान ‘भारत-भारती’ मानद डी. लिट् (दिल्ली विश्वविद्यालय, 1973, आगरा विश्वविद्यालय,1974) हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग (साहित्य वाचस्पति-1973)
विद्या वाचस्पति (उपाधिः गुरुकुल कांगड़ी) साहित्य अकादमी की प्राथमिक सदस्यता प्रथम राष्ट्रीय यूनेस्को की सदस्यता भारतीय लेखक परिषद् की अध्यक्षता दिल्ली प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन का सभापतित्व

 भाषा शैली   

जैनेन्द्र कुमार की कहानियों की भाषा सरल है, पर जहाँ विचार आ गये हैं वहाँ भाषा गम्भीर रूप धारण कर लेती है। जैनेन्द्र जी की भाषा विचार और विषय के अनुरूप स्वयं ही परिवर्तित होती रहती है। गम्भीर स्थलों पर भाषा में वाक्य बड़े तथा शब्दों में तत्समता दिखाई देती है। इसके विपरीत वर्णनात्मकता आने पर भाषा व्यावहारिक एवं सरल हो गई है। ऐसे स्थलों पर वाक्य छोटे-छोटे हैं। जैनेन्द्र जी ने साहित्यिक हिन्दी का प्रयोग किया है। उन्होंने अरबी, फारसी, उर्दू तथा अंग्रेज़ी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया है जिससे भाषा में व्यावहारिकता एवं स्वाभाविकता आ गई है। भाषा में मुहावरों और कहावतों का भी प्रयोग हुआ है।

 कथा 

लेखक अपने एक मित्र के साथ नैनीताल घूमने के लिए गये। वे होटल डि पव में ठहरे। शाम को जब वे घूमने निकले तब कुछ देर घूमने के बाद एक बेंच पर बैठ गये। समय बीतता गया और अंधकार बढ़ता गया। हवा में नमी बढ़ती जा रही थी। लेखक उठना चाहते थे पर उनके मित्र ने उन्हें हाथ पकड़कर बैठा लिया। इतने में उस अँधेरे कुहरे में कुछ चलता हुआ-सा दिखाई दिया। वह दस- ग्यारह साल का एक लड़का था। नंगे सिर, नंगे पैर, केवल एक कमीज़ पहने चला जा रहा था। वह अपना सिर खुजला रहा था। उसका रंग गोरा था पर मैल से काला पड़ गया था।अपना अपना भाग्य कहानी की मार्मिकता साहित्य जन मंथन वह केवल अपने वर्तमान को देख

रहा था। दुनिया से बेख़बर चला जा रहा था। लेखक के मित्र ने उसे आवाज़ लगाई। उससे पूछा कि वह कहाँ जा रहा है। वह कोई उत्तर नहीं दे सका क्योंकि उसका कोई गन्तव्य नहीं था। वह किसी दुकान पर नौकर था। मालिक उसे एक रुपया और जूठा खाना देता था। उसे मालिक के सभी काम करने पड़ते थे। घर से गरीबी के कारण भाग आया था। वह दुकान पर सोता था।आज दुकान के मालिक ने उसे नौकरी से हटा दिया था। उसने आज खाना नहीं खाया था। उसके सोने के लिए भी कोई स्थान नहीं था। उसका गाँव वहाँ से पन्द्रह कोस दूर था। उसके कई भाई-बहन थे। माँ-बाप भूखे रहते। न वहाँ काम था, न खाने के लिए ही कुछ था। वह उसी गाँव के अपने एक साथी के साथ भाग आया था। उसके साथी को उसके मालिक ने इतना मारा कि वह मर गया । लेखक तथा उनके मित्र को बालक की स्थिति पर दया आ गई। वे उसे साथ ले गये। उनके एक मित्र वकील थे जो किसी और होटल में ठहरे हुए थे। वकील साहब को नौकर की आवश्यकता थी, अत: वे बालक को उनके पास नौकरी दिलाने के लिए ले गये थे। उस लड़के को नौकरी दिलाने के लिए मित्र ने काफ़ी प्रयत्न किया पर वकील साहब बिना उस लड़के के बारे में कुछ जाने उसे अपने यहाँ रखने के लिए तैयार नहीं हुए कुछ वाद-विवाद के पश्चात् वे वहाँ से चले गये। लेखक तथा उनके मित्र निराश होकर होटल से बाहर आ गये। बालक की सहायता करने के लिए लेखक के मित्र ने बहुत प्रयत्न किया पर वह सफल न हो सके। तेज ठण्डी हवा चल रही थी, बालक के दाँत बज रहे थे। उसके पास एक कमीज़ के अलावा कोई और कपड़ा न था। वह वहाँ से अँधेरे में गुम हो गया और वे दोनों मित्र गर्म बिस्तरों का आनन्द लेने होटल डि-पव की ओर चल पड़े।
दूसरे दिन वह समय पर उनके होटल नहीं पहुँचा। दोनों मित्रों ने उसकी प्रतीक्षा भी नहीं की। वे होटल से निकलने के लिए मोटर में सवार होने लगे तो उन्हें एक बालक के ठण्ड से मरने की खबर मिली। वे समझ गये कि वह बालक, जो पिछली रात उन्हें मिला था सड़क के किनारे, पेड़ के नीचे ठिठुरकर मर गया। रात में उसके मुँह, छाती और मुट्ठियों पर बर्फ़ की चादर बिछ गई थी जैसे वही उसका प्रकृति द्वारा दिया गया सफ़ेद ठण्डा कफ़न था। वे किसी को दोष न दे सके। वह बालक अपने दुर्भाग्य के कारण कोई स्थान न पाकर भूख और सर्दी से ठिठुककर अपने घर से दूर असमय ही मर गया।

  महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • बहुत कुछ निरुद्देश्य घूम चुकने पर लेखक तथा उनके मित्र सड़क के किनारे एक बैंच पर बैठ गये।
  • हाथ पकड़कर ज़रा और बैठाने के बाद लेखक चुपचाप बैठे तंग हो रहे थे, कुढ़ रहे थे कि मित्र अचानक बोले-देखो वह क्या है?
  • एक लड़का अपने सिर के बड़े-बड़े बाल खुजलाता चला आ रहा था।
  • नंगे पैर, नंगे सिर, एक मैली सी कमीज़ पहने था। वह बस अपने निकट वर्तमान को देख रहा था।
  • वह कहीं नौकरी करता था। सब तरह का काम, एक रुपया और जूठा खाना। आज वह नौकरी भी छूट गई थी।
  • पूछने पर पता चला कि गाँव में उसके कई भाई-बहन हैं। वहाँ काम नहीं, रोटी नहीं, सो भाग आया।
  • एक साथी और था उसी गाँव का, उसे इतना मारा कि वह मर गया। उससे बड़ा। अब वह नहीं है।
  • लेखक तथा उनके मित्र उस लड़के को अपने एक वकील मित्र के पास ले गए।
  • वकील साहब होटल के कमरे से उतरकर आये। “आपको नौकर की ज़रूरत थी न, देखिये यह लड़का है।”
  • वकील मित्र का कहना था, “अजी, ये पहाड़ी बड़े शैतान होते हैं। बच्चे-बच्चे में अवगुण छिपे रहते हैं। आप भी क्या अजीब हैं- उठा लाए कहीं से-लो जी, यह नौकर है।’
  • लेखक के मित्र ने लेखक से कहा “भयानक शीत है। उसके पास कम-बहुत कम कपड़े हैं।
  • लेखक ने उत्तर दिया, “यह संसार है यार! चलो, पहले बिस्तर में गरम हो लो, फिर किसी और की चिन्ता करना।
  • मोटर पर सवार होते ही यह समाचार मिला। पिछली रात, एक पहाड़ी बालक, सड़क किनारे- पेड़ के नीचे, ठिठुरकर मर गया।
  • मानो दुनिया की बेहयाई ढँकने के लिए प्रकृति ने शव के लिए सफ़ेद और ठण्डे कफ़न का प्रबन्ध कर दिया था।
  • लेखक ने यह सब सुना और सोचा- अपना-अपना भाग्य।

शीर्षक की सार्थकता

कहानी का शीर्षक जिज्ञासापूर्ण है। उसे पढ़ते ही पाठक के मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है कि लेखक ने किसके भाग्य का उल्लेख किया है। एक ओर नैनीताल में आनन्द मनानेवाला धनिक वर्ग है तो दूसरी ओर शीत से ठिठुरकर मर जाने वाला एक पहाड़ी बालक। दो बालक एक
साथ घर से भागकर नैनीताल आये थे। दोनों के भाग्य में असमय मृत्यु लिखी थी। एक साहब की मार से मर गया दूसरा समाज की निष्ठ्रता से। जब भाग्य में खाना लिखाकर ही नहीं लाये तो खाना खाते कहाँ से। वह लड़का माँ-बाप के भूखे रहने पर भागकर नैनीताल आया पर भूखा रहना उसकी नियति थी। अन्त में, भूख से व्याकुल हो, सर्दी के कारण वह मर गया। यह उसका अपना भाग्य ही था कि स्वार्थी, लाचार और बेशर्म समाज को बालक पर दया नहीं आई पर प्रकृति ने जाते-जाते उसे सफ़ेद बर्फ का शीत कफ़न अवश्य दे दिया। वकील साहब की सम्पन्नता और बालक की विपन्नता को देखकर मुँह से निकलता है- अपना- अपना भाग्य! इस तरह यह शीर्षक पूर्णत: उचित है।

कहानी का उद्देश्य

जैनेन्द्र जी ने अपनी कहानियों में सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक यथार्थ को उजागर किया है।’अपना-अपना भाग्य’ में भी सामाजिक विषमता का यथार्थ चित्रण हुआ है। इसमें लेखक ने सामाजिक भावना की परख व्यक्ति के दृष्टिकोण से की है। दस वर्ष का एक बालक भूख से पीड़ित होकर अपने एक साथी के साथ घर से भागकर नैनीताल आता है पर वहाँ भी भूख उसका पीछा नहीं छोड़ती। हर तरह का काम करने पर भी उसे जूठा खाना और एक रुपया ही मिलता था। इस तरह समाज में गरीब और लाचार बालकों का शोषण दिखाना लेखक का उद्देश्य है। लड़के के साथी की मृत्यु का कारण साहब का मारना ही था। सामाजिक विकृतियों को उभारकर पाठकों के हृदय में दया के भाव जगाना इस कहानी का उद्देश्य है। सड़क के किनारे भूखा, सर्दी की रात में बिना कपड़ों के वह बालक ऐसा सोता है कि फिर कभी जाग ही नहीं पाता है। वकील साहब स्वयं तो चार रुपये रोज़ के होटल के कमरे में सो जाते हैं पर बालक को नौकरी नहीं देते क्योंकि उस बालक की पहचान नहीं है। कहाँ से लाये वह पहचान? यदि उसकी इस निष्ठुर समाज में पहचान होती तो क्या वह काली चिथड़े-सी कमीज़ में सर्दियों की रात में सड़क पर भूखे पेट घूम रहा होता! समाज के ठेकेदारों को तो गरीब में सौ ऐब दिखाई देते हैं। वे उन्हें शैतान और चोर-उचक्का ही समझते हैं । ये गरीब कहाँ
से लायें अपनी पहचान, कैसे विश्वास दिलायें अपनी ईमानदारी का, कैसे वास्ता दें अपनी भूख का जो उन्हें हर व्यक्ति से अपमानित कराती है ? इस तरह सामाजिक वैषम्य के प्रति बुद्धिजीवियों की उपेक्षापूर्ण उदासीनता एवं असमर्थता की मनोवृत्ति पर भी लेखक ने तीखा व्यंग्य किया है। कहानी का अन्त पाठक के मन में हलचल मचा देता है।

चरित्र चित्रण

बालकः

वह कहानी का मुख्य पात्र है। वह दस वर्ष का एक गरीब बालक है जो अत्यन्त स्वाभिमानी एवं मेहनती है। उसका भाग्य उसका साथ नहीं देता है। भूख से पीड़ित हो वह नैनीताल आया है। एक जगह नौकरी करके जूठा खाना खाने के लिए गरीबी ने उसे मजबूर कर दिया है। वह नौकरी भी छुट गई। बालक निकट वर्तमान के विषय में सोचने लगा। भूखा होने पर भी उसने किसी से खाना नहीं माँगा। उसे काम की ज़रूरत थी। पर गरीब की ज़िम्मेदारी कोई नहीं लेता। लेखक के मित्र के अनुसार वह बेईमान नहीं हो सकता पर वे भी उसे कोहरे में भाग्य के हाथों मरने के लिए छोड़ देते हैं। इस बालक का सहज, निश्छल और निरीह व्यक्तित्व सहृदय पाठक की सारी सहानुभूति समेटकर उसके भाव जगत पर छा जाता है और मन में करुणा उत्पन्न कर देता है।

लेखक :-

लेखक कहानी के एक पात्र हैं जो वाचाल स्वभाव के हैं। चुपचाप बैठना उनके लिए मानो खुद को सज़ा देने के बराबर है। लेखक दार्शनिक हैं। बालक के साथी की मृत्यु के सम्बन्ध में जानकर अचरज से भर जाते हैं पर उनके हृदय में दया नहीं उभरती। वे उदासीन बुद्धिजीवी है। वे घटना पर केवल तटस्थ टिप्पणी करते हैं। मित्र के यह कहने पर कि भयानक शीत है और बालक के पास कपड़े बहुत कम हैं, वे स्वार्थ की दार्शनिकता से उत्तर देते हैं कि पहले बिस्तर में गर्म हो लें। उनके मन में बालक की करुण स्थिति के लिए दया नहीं उभरती। बालक की मृत्यु भी उन्हें सोचने पर मजबूर करती है- अपना-अपना भाग्य। इस तरह समाज के उत्तरदायित्व से मुँह मोड़ लिया जाता है। लेखक का चरित्रांकन अत्यन्त स्वाभाविक, मनोवैज्ञानिक एवं प्रभावपूर्ण शैली में हुआ है।

लेखक के मित्र :-

लेखक के मित्र भावुक स्वभाव के व्यक्ति हैं। निरुद्देश्य घूमने के पश्चात वे देर तक बैंच पर बैठे रहते हैं। वे कुछ सनकी स्वभाव के भी हैं । लेखक उठना चाहते हैं पर वे उठने ही नहीं देते हैं। शायद वे प्रकृति का आनन्द कुछ और समय तक लेना चाहते थे । वे अल्पभाषी व्यक्ति लगते हैं। उनके हृदय में सहानुभूति है। बालक को फटी हुई कमीज़ में नंगे पैर और सिर देखकर उनके मन में जिज्ञासा उभरती है। वे बालक से पूछताछ करते हैं, दूसरों के मनोभावों को परखने में वे चतुर हैं। वे समझ जाते हैं कि बालक घर से भागकर आया होगा। वे परोपकारी और परसहायक भी हैं। वे बच्चे को नौकरी दिलाने का प्रयत्न करते हैं। उनकी इन्सान की प्रकृति के विषय में अच्छी परख है। उनके अनुसार वह बालक बेईमान नहीं हो सकता। उनमें दयाभाव है, चिन्ता है। कहते हैं कि बालक के पास कपड़े बहुत कम हैं जबकि सर्दी भयानक है, पर कुछ करते नहीं हैं। वे लेखक की तरह बुद्धिजीवी हैं पर लेखक की अपेक्षा अधिक सक्रिय हैं। वे बालक की सहायता कर सकते थे। वे चाहते तो अपना कोई कपड़ा उसे दे सकते थे पर देते नहीं हैं।

 शब्दार्थ 

  1. निरुद्देश्य = बिना किसी उद्देश्य के = without any purpose;
  2. अरुण = लाल = scarlet
  3. सनक= धुन; एकाएक मन में उठनेवाला विचार = whim
  4. कुढ़ना = चिढ़ना = to get irritated
  5. प्रकाश-वृत्त =रोशनी का घेरा = circle of light
  6. झुर्रियाँ = सिकुड़न wrinkles
  7. सूनी = खाली = empty
  8. ऑँखें फाड़ना = आश्चर्य व्यक्त करना = to stare
  9. वर्तमानमौजूदा समय = present
  10. कोस = लगभग तीन किलोमीटर की दूरी = a distance of about three km
  11. झुंझलाहट ; चिड़चिड़ापन = annoyance
  12. अवगुण = बुराइयाँ = vices
  13. असमंजस में होना=दुविधा, अनिश्चय की स्थिति में होना = to be in a fix
  14. स्वार्थ = मतलब = selfishness
  15. फ़िलासफ़ी सुनना = उपदेश देना सलाह देना= philosophize
  16. निठुराई = कठोरता =cruelty
  17. समाचार = खबर = news
  18. बेहयाई = बेशमी =shamelessness
  19. उपहार = तोहफ़ा = gift, present
  20. कफ़न = मृत शरीर को लपेटने के लिए कपड़ा coffin
  21. मूक =चुपचाप = quiet
  22. लाचारी = मजबूरी = helplessness

 प्रश्नोत्तर अभ्यास

प्रश्न १

” वह हमें न देख पाया, वह जैसे कुछ भी न देख रहा था। न नीचे की धरती, न ऊपर चारों ओर फैला हुआ कुहरा, न सामने का तालाब, और न एकाकी दुनिया। वह बस अपने निकट वर्तमान का देख रहा था।”

  1. ‘वह’ शब्द किसके लिए प्रयोग किया गया है। उसका परिचय दीजिए।
  2. वह ‘हमें’ क्यों नहीं देख पाया? ‘हमें’ शब्द का प्रयोग किनके लिए किया गया है? वे वहाँ क्या कर रहे थे?
  3. वह अपने किस निकट के वर्तमान को देख रहा था और क्यों? स्पष्ट कीजिए ।
  4. लेखक के मित्र ने बालक से क्या पूँछा? बातचीत के दौरान मित्र को जिन तथ्यों का ज्ञान हुआ उनमें से किन्हीं दो को समझाइए ।

उत्तर –

१. ‘वह’ शब्द का प्रयोग ‘बालक’ के लिए किया गया है। वह अपने सिर के बड़े-बड़े बालों को खुजला रहा था। उसके पैर में जूते नहीं थे उसके सिर पर टोपी नहीं थी।बदन पर मैली-सी फटी हुई कमीज़ लटकाई हुई थी। सर्दी का मौसम था। वह बालक नैनीताल से पन्द्रह कोस दूर एक गाँव का रहनेवाला था । उसके कई भाई-बहन थे। माँ-बाप इतने गरीब थे कि उन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता था। बालक अपने एक साथ के साथ नैनीताल भाग आया था। वहाँ उसे एक नौकरी मिली जिसमें सब काम करना पड़ता था तथा बदले में एक रुपया, जूठा खाना तथा सोने की जगह मिलती थी। वह दस-ग्यारह वर्ष का था। उस दिन उसकी वह नौकरी भी छूट गई, जिससे वह भूखा था और उसके पास सोने के लिए स्थान भी नहीं था।

२. वह बालक ‘हमें’ इसलिए नहीं देख पाया क्योंकि वह अपनी समस्या में खोया हुआ था। वह कुछ भी देख नहीं रहा था। वह न ज़मीन पर देख रहा था न कुहरे को। उसे न नैनीताल का ताल दिख रहा था न ही एकाकी दुनिया। ‘हमें’ शब्द का प्रयोग लेखक और उसके मित्र के लिए किया गया है। वे दोनों वहाँ घृूमने आये थे। वे दोनों निरुद्देश्य घूमने के बाद सड़क के किनारे एक बैंच पर बैठे हुए थे। मित्र उठना नहीं चाह रहे थे। शायद उन्हें वहाँ एकान्त में बैठना अच्छा लग रहा था। वे प्रकृति के सौन्दर्य का अवलोकन और भी देर तक करना चाहते थे । लेखक को चुपचाप बैठना अच्छा नहीं लग रहा था, वे ऊब रहे थे।

३. बालक की नौकरी छूट गई थी। वह पहले जिस दुकान में काम करता था रात को वहीं सो जाया करता था। सोने के लिए कम से कम छत तो थी। अब पूरा दिन प्रयत्न करने पर भी उसे दूसरी नौकरी नहीं मिली। वह दिन भर का भूखा था। सर्दी बहुत अधिक थी। उसके पास तन ढकने के लिए एक चिथड़ी कमीज़ के अलावा और कुछ भी नहीं था। सिर छिपाने के लिए कोई छत नहीं थी। इतने बड़े शहर में वह एकाकी था।उसका साथी भी मर चुका था। वही उसका निकट वर्तमान था जिसमें वह उलझा हुआ था ।

४. मित्र ने बालक से उसके घूमने का कारण पूछा क्योंकि सारी दुनिया सो गई थी और बालक वहाँ अकेला घूम रहा था। बच्चे के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था। मित्र के प्रश्नों के उत्तर में उसे बालक के विषय में यह जानकारी मिली कि आज बालक की नौकरी छूट गई है। जब से वह अपने गॉँव से आया था एक दुकान में काम करता था जहाँ उसे सारा काम करना पड़ता था और बदले में एक रुपया, जूठा खाना तथा सोने के लिए जगह मिलती थी। वह आज सवेरे से भूखा था। उसके पास सोने की जगह नहीं है। उसका एक साथी भी उसके साथ आया था जो कि साहब के मारने से मर गया था।

प्रश्न २

चुप-चुप बैठे तंग हो रहा था, कुढ़ रहा था कि मित्र अचानक बोले – “देखो वह क्या है?” मैंने देखा कि कुहरे की सफेदी में कुछ ही हाथ दूर से एक काली-सी मूर्ति हमारी तरफ आ रही थी। मैंने कहा – “होगा कोई”

  1. लेखक तंग क्यों हो रहे थे?
  2. दोनों मित्र किस शहर में और कहाँ बैठे हुए थे? उन्होंने क्या देखा?
  3. लेखक ने क्यों कहा “होगा कोई”? पहली ही नज़र में यह कैसे पता चला कि लड़का बहुत गरीब है?
  4. लड़के ने अपने बारे में लेखक को क्या-क्या बताया?

उत्तर –

१ . लेखक तंग रहे थे, क्योंकि सर्दी का मौसम था और शाम हो रही थी। लेखक कड़ाके की ठंड से बचने के लिए होटल वापस लौट जाना चाहते थे पर उनका मित्र वहाँ से जाने की अपनी इच्छा जाहिर ही नहीं कर रहा था।

२.  दोनों मित्र नैनीताल में थे और उस समय वे होटल से निकलकर घूमने के लिए आए थे। शाम का समय था और दोनों निरुद्‌देश्य घूमने के बाद सड़क के किनारे एक बेंच पर आकर आराम से बैठ गए थे।

३ . लेखक ने देखा कि कुहरे की सफेदी में कुछ ही हाथ की दूरी से एक काली छाया-मूर्ति उनकी तरफ बढ़ रही है लेकिन लेखक ठंड से परेशान हो चुके थे और होटल लौटना चाहते थे। उन्हें किसी चीज़ में दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए उन्होंने अनमने भाव से कह दिया “होगा कोई”। लेखक और उनके मित्र को पहली ही नज़र में ही लग गया कि लड़का बहुत गरीब है क्योंकि लड़का नंगे पैर, नंगे सिर और इतनी सर्दी में सिर्फ एक मैली-सी कमीज़ शरीर पर पहने हुए था। रंग गोरा था फिर भी मैल से काला पड़ गया था। उसके माथे पर झुर्रियाँ पड़ गई थीं।

४ . लड़के ने लेखक को बताया कि वह एक दुकान पर नौकरी करता था, सारे काम के लिए एक रुपया और झूठा खाना मिलता था। अब वह नौकरी भी छूट गई थी। उसने बताया कि वह अपने साथी के साथ नैनीताल से पन्द्रह कोस दूर गाँव से काम की तलाश में आया था। गाँव पर उसके कई भाई-बहन थे। माँ-बाप इतने गरीब थे कि उन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता था। मालिक ने उसके साथी को इतना मारा कि उसकी मृत्यु हो गई है ।
प्रश्न ३

” चुप-चुप बैठे तंग हो रहा था, कुढ़ रहा था कि मित्र अचानक बोले – “देखो वह क्या है?”

  1. लेखक और उनके मित्र कब, कहाँ बैठे थे? उस जगह के सौन्दर्य का वर्णन लेखक ने किस प्रकार किया है
  2. लेखक चुपचाप क्यों बैठे थे? वे कुढ़ क्यों रहे थे? समझाकर लिखिए।
  3. अचानक मित्र ने लेखक को क्या दिखाया? वह कितनी दूरी पर था और क्या कर रहा था ?
  4. कहानी का उद्देश्य अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।                                                                                  

प्रश्न ४

” बालक फिर आँखों से बोलकर मूक खड़ा रहा। आँखें मानो बोलती थी – “यहभी कैसा मूर्ख प्रश्न ! ”

  1. बालक मूक होकर क्यों खड़ा था ? उसकी ऑँखों ने क्या कहा और क्यों ? स्पष्ट कीजिए।
  2. क्या प्रश्न था ? प्रश्न को मूर्खतापूर्ण क्यों कहा गया है ? समझाइये।
  3. अपने माता-पिता के विषय में बालक ने क्या जानकारी दी ?
  4. बालक जहाँ पिछली रात सोया था, वहाँ आज क्यों नहीं सो सका ? वह वहाँ क्या काम करता था और बदले में क्या पाता था?

प्रश्न ५

” बस ज़रा-सी उम्र में ही इसकी मौत से पहचान हो गई। मुझे अचरज हुआ, पूछा-“मर गया?”

  1. यहाँ किसकी मौत की पहचान की बात हो रही है ? वह कौन था और क्यों मर गया था ?
  2. लेखक के अचरज का क्या कारण था ? वे उस बालक को कहाँ ले गये और क्यों ?
  3. वकील साहब के नीचे उतरते हुए उनके स्वर में हल्की झुँझलाहट और लापरवाही क्यों थी ?
  4. वकील साहब ने लड़के को नौकरी क्यों नहीं दी ? पहाड़ी बालकों से सम्बन्ध में उनका क्या मत था ?

प्रश्न ६

” भयानक शीत है ठसके पास कम-बहुत कम कपड़े …. ।”

  1. सोते समय मित्र उदास क्यों था ? वह उसकी सहायता क्यों नहीं कर सका ?
  2. वकील साहब तथा दोनों मित्र रात को कहाँ सोये ? इसके विपरीत बालक की रात कहाँ बीती ?
  3. भयानक शीत तथा उस समय की हवा का लेखक ने किस तरह वर्णन किया है ? बालक के पास कौन-से कपड़े थे?
  4. लेखक ने मित्र को कौन-सी फ़िलॉसफ़ी सुनाई ? आप उससे कहाँ तक सहमत हैं?

प्रश्न ७

” मोटर में सवार होते ही यह समाचार मिला। पिछली रात, एक पहाड़ी बालक,सड़क के किनारे-पेड़ के नीचे, ठिठुरकर मर गया।”

  1. मोटर में सवार होते हुए लेखक को कौन-सा समाचार मिला?
  2. उन्हें कैसे ज्ञात हुआ कि वह बालक वही था जो उन्हें पहले दिन मिला था?
  3. आदमी की दुनिया ने उसे कौन-सा उपहार दिया था?
  4. बालक की मृत्यु का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न ८

” सब सुना और सोचा- अपना-अपना भाग्य।”

  1. बालक और उसके साथी के भाग्य में क्या अन्तर था ? लेखक ने क्या सुना ? उसका उस पर क्या प्रभाव पड़ा ?
  2. प्रकृति ने बालक को कौन-सा उपहार दिया ? दुनिया की बेहयाई क्या थी ?
  3. बालक को मत्यु के मुँह से कैसे बचाया जा सकता था? ऐसी दशा में समाज का क्या कर्त्तव्य होना चाहिए ?
  4. लेखक इस कहानी में यथार्थ जीवन का चित्रण करने में कहाँ तक सफल हुआ है ? उदाहरण सहित लिखिए।

प्रश्न ९  

” बताने वालों ने बताया कि गरीब के मुंह पर, छाती, मुट्ठी और पैरों पर बर्फ की हल्की-सी चादर चिपक गई थी। मानो दुनिया की बेहयाई ढकने के लिए प्रकृति ने शव के लिए सफ़ेद और ठंडे कफ़न का प्रबंध कर दिया था।”

  1. किसे, कब और कौन-सा समाचार मिला ?
  2. लेखक का मित्र उस पहाड़ी लड़के को कुछ देना चाहता था, पर क्यों नहीं दे पाया?
  3. मरनेवाले बालक को उपहार किसने दिया था ? वह उपहार क्या था ?
  4. “अपना-अपना भाग्य” कहानी में कहानीकार ने किस समस्या को उजागर किया है ?

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