गाँधी का एक सुख रहा कि वे स्वातंत्र्योत्तर भारतीय समाज के सर्वमान्य प्रतीक के रूप में पढ़े गये

गाँधी का एक सुख रहा कि वे स्वातंत्र्योत्तर भारतीय समाज के सर्वमान्य प्रतीक के रूप में पढ़े गये साहित्य जन मंथन

ट्रस्टीशिप बचा रहे, देशज शिक्षा बची रहे, वैष्णवजन बचा रहे,राम और रामराज्य बचा रहे तो महात्मा गाँधी भी बचे रहेंगे— प्रो. चन्दन कुमार

गाँधी स्टडी सर्किल, दयाल सिंह सांध्य महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन समापन सत्र में ‘थियोराईजिंग गाँधियन पॉलिटिक्स’ विषय पर विशिष्ट वक्ता के रूप में प्रो. चन्दन कुमार ने अपना वक्तव्य दिया। प्रो. चन्दन कुमार ने कहा कि गाँधी का एक सुख रहा कि वे स्वातंत्र्योत्तर भारतीय समाज के सर्वमान्य प्रतीक के रूप में पढ़े गये। समस्या गाँधी को सत्ताकेंद्रित रखकर पढ़ने से हुई है। गाँधी का जीवन ही उनका सन्देश है। अपने जीवन को अपना संदेश कहने वाला व्यक्ति ही सत्य के साथ प्रयोग कर सकता है। प्रो. कुमार ने कहा कि हमारी दीर्घजीविता हमारी समाजकेंद्रीयता से तय होती है। गाँधी ने कुल चार पत्रिकाओं का प्रकाशन किया, इसके अतिरिक्त गाँधी द्वारा लियो टॉलस्टाय को पांच पत्र भी लिखे गए। गाँधी की आत्मकथा का जिक्र करते हुए प्रो. कुमार ने गाँधी के हिन्दू मन के निर्माण के अवयवों का उल्लेख किया। गाँधी को वैष्णव भाव की निरंतरता में पढ़ना जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम में कई साधारण व्यक्ति गाँधी के संपर्क में आके महान बने। आचार्य शुक्ल के निबंध ‘असहयोग और अव्यापारिक श्रेणियाँ’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने गाँधी और शुक्लजी के मध्य की वैचारिक असहमतियों पर भी विचार किया। गाँधी के अहिंसा के विचारों से शुक्लजी की असहमति का भी उल्लेख किया। आगे उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद के गांधी प्रियंवद की वीणा की तरह हैं जिसे हर कोई अपने अनुसार व्याख्यायित करता रहा है। हिंदी के कई रचनाकारों के यहां गाँधी एक हिन्दू हठ की तरह हैं। भारत में ट्रस्टीशिप की अवधारणा और वामपंथी राजनीति की असफलता के कारणों पर भी प्रो. कुमार ने अपने विचार व्यक्त किये। गाँधी वामपंथी राजनीति की कसक हैं। उन्होंने बताया कि स्वातंत्र्योत्तर भारत में गाँधी एक वाजिब मजबूरी हैं। असहमति को सम्मान देने की परंपरा हम गाँधी से सीख सकते हैं। आपको गाँधी का पाठ तय संरचना के भीतर ही करना होगा। अंत में उन्होंने कहा कि गाँधी तब तक बचे रहेंगे जब तक भारतीय सनातन मूल्यों की अवधारणा बची है। सत्र के अन्य वक्ताओं में जतिंदर बजाज और प्रो. उज्ज्वल सिंह ने भी अपने वक्तव्य दिए। समापन सत्र की अध्यक्षता प्रो. गोपेश्वर सिंह ने की। संगोष्ठी का आयोजन डॉ. शिवानी सिंह ने किया। कार्यक्रम में डा.पवन शर्मा,डा.अशोक सिंह ,डा रिंकु सहित अनेक शोधार्थियों और विद्यार्थियों की उपस्थिति रही।

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