सजा मुझे क्यों (कहानी) – प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम” (Saja Mujhe Kyo)

सजा मुझे क्यों (कहानी) - प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम" (Saja Mujhe Kyo) साहित्य जन मंथन

कहानी शीर्षक : सजा मुझे क्यों (Saja Mujhe Kyo)

[ शिल्पा ने कहा, ”मैं अपने रिश्ते की नींव झुठ के सहारे नहीं रखना चाहती। इसलिए मैं जो बात बताउंगी वह जानने के बाद भी यदि आप मुझ से शादी करने तैयार हैं..]

आज पंकज को शिल्पा से मिलने मॉल जाना था। शिल्पा से उसके रिश्ते की बात चल रही थी। दोनों परिवार के लोग आधुनिक विचारों के थे। अत: जब तक लड़का लड़की आपस में एक दूसरे को पसंद न कर ले तब तक बात आगे बढ़ने का सवाल ही नहीं था। नियत समय पर पंकज मॉल पहुंच गया। जब उसने शिल्पा को बिना किसी मेकअप के बिल्कुल साधे लिबास में देखा तो देखता ही रह गया। उसने आसमानी रंग का सूट पहन रखा था। वो इतनी साधारण लग रही थी कि दूसरा कोई लड़का होता तो झट से उसे रिजेक्ट कर देता। लेकिन पंकज को शिल्पा की यह सादगी भा गई।

हाय-हैलो होने के बाद पंकज ने पूछा, ”मैं आज तक जितनी भी लड़कियों से मिला हूं, उनसे मिल कर समझ में आता है कि वे पार्लर से तैयार होकर आई है। लेकिन आपने तो लिपस्टिक तक नहीं लगाई। क्या आपको मैं पसंद नहीं हूं या आप किसी और से प्यार करती है?”

”ऐसी कोई बात नहीं है। दरअसल शादी से पहले दोनों पक्ष एक-दूसरे को समझना चाहते है। लेकिन दोनों ही पक्ष इतने बनावटी हो जाते है कि कोई किसी को समझ ही नहीं पाता। मान लीजिए यदि हमारी शादी होती है, तो शादी के बाद आप ज्यादातर समय मुझे बिना मेकअप में ही देखेंगे न! इसलिए मैं ने सोचा कि शादी से पहले भी मैं आपके सामने अपने वास्तविक रुप में क्यों न आऊं?”

पकंज पहले ही शिल्पा की सादगी से प्रभावित हो गया था। अब तो सूरत के साथ-साथ सीरत का भी कायल हो गया।
”आप यह शादी किसी तरह के दबाव में तो नहीं कर रही है?”
”नहीं, मेरी पसंद ही मम्मी-पापा की पसंद होगी। क्या मैं शादी के बाद जॉब कर सकती हू? शिल्पा ने पूछा।
”हां, बिल्कुल कर सकती हो…हमारे यहां बर्तन-कपड़ा, झाड़ू-पोंछा आदि कार्यों के लिए कामवाली है। लेकिन मम्मी को कुक रखना पसंद नहीं है। मम्मी को लगता है कि खाना बनाने वाला जिस भावना से खाना बनाता है, उसका असर खाने वाले पर जरुर होता है। जिस प्रेम की भावना से परिवार की महिलाएं खाना बनाती है उस भावना से कोई भी कुक नहीं बनायेगी। इसलिए हम कुक नहीं रखते। मम्मी को खाना बनाना बहुत पसंद है। लेकिन उम्र के साथ वो ज्यादा काम नहीं कर पाती। इसलिए आपको भी किचन में काम करना पडेगा। मतलब सास-बहू दोनों को मिल कर खाना बनाना होगा। वैसे जरुरत पड़ने पर मैं एवं पापा भी खाना बनाने में मदद कर सकते है। ऐसा नहीं है कि काम कितना भी ज्यादा क्यों न हो घर के पुरुष किचन में काम नहीं करेंंगे!!”

”आंटी के और मेरे विचार बिल्कुल मिलते है। यदि घर के सभी सदस्य मिलजुल कर रहे तो किचन का काम आसानी से किया जा सकता है।”

”क्या आप मेरे माता-पिता के साथ रहना पसंद करेगी?” पंकज ने पूछा।
”माता-पिता कई मुसीबतों का सामना कर हमारा पालन-पोषण करते है। हमारा भी फर्ज है कि हम उनकी अच्छे से देखभाल करे, उन्हें खुश रखे। जब तक परिवार साथ में न हो तब तक जिंदगी जीने में मजा ही नहीं आता। वैसे भी बड़ों के आशिर्वाद के बिना हम खुश भी नहीं रह पायेंगे।”

इस तरह के सवाल जबाब दोनों के बीच होते रहे। अभी तक की बातचीत से दोनों मन ही मन खुश हो रहे थे कि उन्हें जैसा हमसफर चाहिए था वैसा मिल रहा है। अचानक शिल्पा ने कहा, ”वैसे तो मम्मी-पापा ने मुझे सख्त हिदायत दी थी कि मैं यह बात आपको न बताऊं लेकिन मैं अपने रिश्ते की नींव झुठ के सहारे नहीं रखना चाहती। इसलिए मैं जो बात बताउंगी वह जानने के बाद भी यदि आप मुझ से शादी करने तैयार हैं, तो मेरी भी हां है।”

पकंज के दिल की धडकने अचानक तेज हो गई कि न जाने ऐसी कौन सी बात है, जिसे बताने के लिए अंकल आंटी ने मना किया।
”बताना तो चाहती हूं…लेकिन कैसे बताऊं समझ में नहीं आ रहा है…”
”आप निसंकोच होकर बताइए…”
”चार साल पहले मेरे मामीजी अस्पताल में भरती थे। मैं रात को 8 बजे टिफिन देकर अस्पताल से लौट रही थी। रास्ते में एक सुनसान जगह पर मेरी स्कूटी ख़राब हो गई। मैं स्कूटी पकडकर जा रही थी। अचानक चार लड़कों ने मुझे घेर लिया। हालांकि मुझे जुडो-कराटे आते है लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि मैं अपना बचाव नहीं कर सकी और उन चारों ने मेरा सामुहिक बलात्कार करके सड़क किनारे फेंक दिया। जैसे कि मैं कोई इंसान हूं ही नहीं! स्ट्रीट लाइट बंद होने से अंधेरे की वजह से मैं उन दरिंदों के चेहरे नहीं देख पाई थी। इसलिए हम ने पुलिस में शिकायत तक नहीं की क्योंकि मैं उन दरिंदों को पहचान ही नहीं सकती थी!! कुछ दिन तक तो मैं पूरी तरह सदमें में थी। फ़िर किसी तरह मम्मी-पापा के हौसले और प्यार से खुद को किसी तरह मैं ने संभाला था। क्या ये सब जानने के बाद भी आप मुझ से शादी करने तैयार है?”

पंकज निरुत्तर हो जाता है। उसके मुंह से शब्द ही नहीं निकले। वो टेबल पर का पानी का ग्लास उठा कर पानी पीता है। उसको कुछ न बोलते देख कर शिल्पा के मन को ठेस पहुंचती है। वो एकदम आपे से बाहर हो जाती है।

”अब नहीं करना चाहते न आप मुझ से शादी? उन जानवरों ने मेरे साथ रेप किया उसमें मेरी क्या गलती है? मेरा मतलब यह है कि उन लोगों के गलती की सजा आप मुझे क्यों दे रहे है? क्या आपने कभी बलात्कर का दंश झेला है? क्या आपको पता है कि एक बलात्कार पीडिता को किन किन मानसिक और शारीरिक वेदनाओं से गुजरना पड़ता है? लोगों को लगता है कि यदि एक बार किसी लड़की के साथ बलात्कार हुआ तो आगे भी वो कपड़े उतारकर तैयार बैठेगी! क्योंकि वो पहले से ही अपवित्र जो हो गई है! लेकिन वो लड़के जिन्होंने यह घृणित कार्य किया है वे पाक-साफ़ होकर समाज में खुले आम घुमते रहते है! इतना सब सहने के बाद दोष दिया जाता हैं हमारे ड्रेसिंग सेंस को! लेकिन ऐसी घृणित मानसिकता वालों को कौन समझाएगा कि रेप तो उनका भी होता है जो साडी लपेटकर बाहर निकलती है!! यदि आपकी माँ या बहन के साथ ऐसा होता तो क्या आप उनको स्विकार नहीं करते? मेरे साथ इतना सब होने के बाद मैं ने अपने आप को कैसे संभाला ये मैं आपको शब्दों में नहीं बता सकती। लेकिन आज भी समाज मेरे जैसी लड़कियों को अपनी बहू या पत्नी के रुप में स्विकार नहीं करता। आखिर क्यों? मेरी क्या गलती है? दूसरों के गलती की सजा समाज मुझे क्यों दे रहा है??”

इतना कह कर गुस्से से तेजी से उठ कर शिल्पा जाने लगी। जैसे ही वो अपनी स्कूटी के पास पहुंची, पंकज वहां पर पहले से मौजुद था। अचानक वो शिल्पा के सामने आकर घुटनों के बल बैठ गया और बड़े ही रोमांटीक अंदाज में गेंदे का फुल (जो उसने पास ही के पेड़ से तोड़ा था) उसको देते हुए बोला, ”क्या तुम मुझ से शादी करोगी?”

दोस्तों, हमारे समाज की यह कैसी मानसिकता है कि बलात्कार की सजा बलात्कारी को देने की बजाय समाज बलात्कार पीडिता को ही सजा देता है। उसे ही दोषी मानता है। काश, आज के नौजवानों की सोच पंकज जैसी हो जाए…तो कई शिल्पा अपनी जिंदगी दोबारा जी सकती है!!

सजा मुझे क्यों (कहानी) - प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम" (Saja Mujhe Kyo) साहित्य जन मंथन
  • प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”
  • युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार
  • लखनऊ, उत्तर प्रदेश
  • सचलभाष/व्हाट्सअप : 6392189466
  • ईमेल : prafulsingh90@gmail.com

One Reply to “सजा मुझे क्यों (कहानी) – प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम” (Saja Mujhe Kyo)”

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *