अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर हिंदी विभाग (दिल्ली विश्वविद्यालय) द्वारा आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी का विस्तृत रिपोर्ट

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर हिंदी विभाग (दिल्ली विश्वविद्यालय) द्वारा आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी का विस्तृत रिपोर्ट साहित्य जन मंथन

21 फरवरी 2020 को अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में एक दिवसीय व्याख्यान का आयोजन किया गया। विभागाध्यक्ष प्रो . मोहन की अध्यक्षता में आयोजन संपन्न हुआ। आयोजित कार्यक्रम में विभाग के वरिष्ठ अध्यापको एवं शिक्षार्थियों ने अपने अपने विचार प्रकट किये।

कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना से की गई। निर्देश प्रजापति ने निराला रचित शीर्षक कविता ‘वर दे वीणावादिनी’ का पाठ किया। राहुल दुबे और आशुतोष ने युनेस्को के रिपोर्टो को आधार बनाकर विश्वभर की मातृभाओं पर विचार किया। राहुल ने केदारनाथ सिंह की ‘मातृभाषा’ कविता को उद्धृत कर उसका संबंध आत्म से बताया वही आशुतोष का मानना है कि मातृभाषा में अभिव्यक्त भाव दूसरे भाषा में संभव नहीं है।

अनुपम प्रियदर्शी ने आकादमिक हिंदी और बोलचाल की हिंदी के अंतर को रेखांकित करते हुए हिंदी के विभिन्न पक्षो पर विचार किया और भाषागत प्रतिबद्धता के लिए मातृभाषा दिवस को महत्वपूर्ण बताया। छात्र शुभेंदु ने मातृभाषा के प्रति हीन भावना पर चिंता जताई वहीं गोपाल ने मेवाड़ के वीर गीतों का उल्लेख करते हुए बताया कि स्थानिय कल्चर मातृभाषाओं में ही संभव है। मंच पर आमंत्रित अंतिम छात्र सूर्या ने दोहे के माध्यम से हिंदी की प्रसंशा की और बिहार का लोकगीत गाया।

प्रो . चंदन कुमार ने अरूणाचल प्रदेश के जनजातियों के बीच प्रयुक्त भाषाओं का उदाहरण देते हुए बताया – ‘ भारतभूमि का यह सौभाग्य है कि आप यहाँ जन्म लेते ही बहुभाषिक होते हैं।’उन्होंने हिन्दी की समेकित प्रवृत्ति की ओर संकेत की तथा भारत को भाषाई विविधता का देश कहा। असम के एक क्षेत्र का जिक्र करते हुए प्रो . कुमार का कहना है कि” ऐसी बहुत सारी भाषाएँ हैं जो बिना सत्ता के संरक्षण के बिना बची हैं और भारत इस बात का प्रमाण है।अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि “पांथिक मान्यताओं के अलग होने के बावजूद बंग्लादेश के लोग कलकत्ता आ कर अपनापन महसूस करते हैं”। स्थानिय भाषाओं के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रो . चंदन कुमार ने कहा कि “तुलसी और कबीर इस लिए बडे़ कवि हुए क्योंकि वे अपने अपने स्थानिय भाषाओं के बड़े कवि हैं” ।

डा.विजेंद्र कुमार ने ‘हिन्दी और रोजगार’ के प्रश्न का उत्तर देते हुए बताया कि ‘वर्तमान में हिंदी ने भी अपना संबंध बहुत तेजी से टेक्नोलॉजी से बनाया है अतः इस क्षेत्र में भी रोजगार की प्रयाप्त संभावनाएं हैं। धनार्जन के लिए ब्लॉग और यूट्यूब को सशक्त साधन बताया। डा . विजेंद्र ने प्राचीन रचनाओं के द्वारा भारतीय भाषाओं के महत्व को रेखांकित की तथा कहा कि- युवाओं को भाषा के उत्थान और सशक्तिकरण के लिए प्रयास करना चाहिए।

डा.रामनारायण पटेल ने अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उद्देश्य का उद्घाटन करते हुए कहा कि-“भाषाई अस्मिता को बनाए रखना और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिकता को प्राथमिकता देना ही कार्यक्रम का उद्देश्य है। ” उन्होंने मातृभाषा एवं मातृबोली के अंतर को स्पष्ट किया और कहा कि-‘मातृबोली में मातृभाषा की सहजता, सरलता और उसका संपूर्ण रचना संसार समाहित होता है’ डा . पटेल के अनुसार -‘भाषा की प्रकृति और प्रवृत्ति को समझ लेने से उस क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता को समझा जा सकता है’।उन्होंने संपर्क भाषा के रूप में भारतीय भाषाओं को अपनाने का संकेत दिया।

अंत में विभागाध्यक्ष प्रो .मोहन ने अपने अध्यक्षीय भाषण में भाषाओं के प्रति समशील भाव रखने का संदेश दिया तथा मातृभाषा के लिए शहीद हो जाने वाले भाषा प्रेमियों को याद किया।मातृभाषा को यथोचित स्थान न मिलने तथा दुर्गम आदिवासी क्षेत्रों में भाषाओं के लुप्त होने के प्रति उन्होंने चिंता जाहिर की। अध्यक्ष वक्ता ने अपनी विदेश यात्रा के अनुभवों को साझा करते हुए मातृभाषा के महत्व को उजागर किया और कहा कि-‘भाषा निर्भय होने की ताकत देती है।’ कार्यक्रम में उपस्थित विद्याथियों एवं शोधार्थियों को प्रो . मोहन ने मनुष्य एवं भाषा के बीच के अन्योन्याश्रित संबंध को भी समझाया। उन्होंने यह भी कहा कि- “मातृभाषा की समझ न होने पर दूसरी भाषाओं एवं ज्ञान-विज्ञान में भी समझ नहीं होती है।”प्रयोग के स्तर पर हिन्दी की वैविध्यता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि- ‘यह संकट अपेक्षाकृत दूसरे भाषाओं में नहीं है अतः हिन्दी में वर्तनी-दोष की संभावना आ जाती है, जिसे सतत् अभ्यास से सुधारा जा सकता है’। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के अध्यापकों के द्वारा हिंदी भाषा में लिखे जा रहे लेखों की प्रसंशा की। अंत में प्रो . मोहन ने कहा कि- “मातृभाषा के प्रति अनुराग ही देश प्रेम की भावना जागृत करती है”

वरिष्ठ शोधार्थी श्री श्वेतांशु ने मंच संचालन किया। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विद्यार्थियों, शोधार्थियों और अध्यापकों की उपस्थिति थी।

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर हिंदी विभाग (दिल्ली विश्वविद्यालय) द्वारा आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी का विस्तृत रिपोर्ट। ~अंशु कुमार चौधरी

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