लिंगवाद विरोध का प्रतीक अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस साहित्य जन मंथन

लिंगवाद विरोध का प्रतीक अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

8 मार्च को प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व भर में महिला दिवस मनाया जाता है। वास्तव में यह दिवस महिलाओं को उनके योगदान को मान्यता देने के लिए मनाया जाता है। जनसंख्या के आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं की आबादी पूरे विश्व में आधी हैं, फिर भी हमारे समाज में उनको उचित आगे पढ़ें..

अंबेडकरवादी दर्शन, विविध आंदोलन - अस्मिता के संदर्भ में साहित्य जन मंथन

अंबेडकरवादी दर्शन, विविध आंदोलन – अस्मिता के संदर्भ में

‘अस्मिता विमर्श’ साहित्य और चिंतन में भले ही आधुनिक युग की देन प्रतीत होता है, लेकिन इतिहास के पन्नों में यह प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से मानव सभ्यता के इतिहास से जुड़ा हुआ है। जब से मानव की सभ्यता – संस्कृति है , तभी से उसकी अस्मिता अलिखित रूप में उपस्थित आगे पढ़ें..

गाँधी जी का स्वच्छता संदेश साहित्य जन मंथन

गाँधी जी का स्वच्छता संदेश

विश्व पुस्तक मेले के अवसर पर दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा आयोजित ‘‘महात्मा गाँधी का स्वच्छता संदेश’’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में प्रस्तुत आलेख: गाँधी जी का स्वच्छता संदेश गाँधी जी के लिए स्वच्छता केवल बाह्य स्वच्छता नहीं थी अपितु उनके लिए स्वच्छता के कई आयाम थे। उनके लिए मात्र शारीरिक आगे पढ़ें..

हाशिए का समाज और मुक्तिबोध का काव्य साहित्य जन मंथन

हाशिए का समाज और मुक्तिबोध का काव्य

हाशिए का समाज एक व्यापक अवधारणा के रूप में हमारे सामने मौजूद है । हिंदी साहित्य के कई विचारकों ने इस पर अपने-अपने ढंग से विचार किया है चौथीराम यादव ने अपनी पुस्तक ‘उत्तरशती के विमर्श और हाशिए का समाज’ में उल्लेख किया है कि “हाशिए के समाज में दलित, आगे पढ़ें..

हिंदी की आधुनिकता और भारतेंदु युग साहित्य जन मंथन

हिंदी की आधुनिकता और भारतेंदु युग

आधुनिक शब्द समय सापेक्ष है आधुनिक दौर की शुरुआत १४ वीं शताब्दी के मध्य से यूरोप में होती है। इसकी शुरुआत १९ वीं शताब्दी में आकर हुई। डॉ नगेंद्र ने आधुनिक शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया है। मध्यकाल से भिन्नता और इहलौकिक दृष्टिकोण। मध्यकाल अपने विरोध जड़ता और आगे पढ़ें..

मार्टिन लूथर किंग और अहिंसा साहित्य जन मंथन

मार्टिन लूथर किंग और अहिंसा

अहिंसा” अनिवार्य रूप से दो शब्द हैं: “बिना” हिंसा के। “जब इस तरह से वर्तनी की जाती है, तो यह केवल हिंसा की अनुपस्थिति का वर्णन करती है। जब तक मैं “हिंसक नहीं हो रहा हूँ,” मैं अहिंसा का अभ्यास कर रहा हूँ। और यह अहिंसा की सबसे बड़ी गलतफहमी आगे पढ़ें..

महिला सशक्तिकरण साहित्य जन मंथन

महिला सशक्तिकरण

“एक महिला का जन्म नहीं होता है, बल्कि उसे महिला बनाया जाता  है।”-सिमोन डी विभोर। ईडन गार्डन में मूल पाप महिलाओं का था। उसने निषिद्ध फल का स्वाद लिया, आदम को लुभाया। और वह तब से इसकी सज़ा भुगत रही है। उत्पत्ति में, प्रभु ने कहा, “मैं तुम्हारे दुख और आगे पढ़ें..

आदर्श और नैतिकता

आमतौर पर ये दोनों विषय एक से ही दिखते हैं,लेकिन दोनों के अन्तर को समझने से नैतिक मूल्यों के पालन करने में सुविधा जरूर हो जाती है। हर इंसान कुछ आदर्शों के साथ जीता है,भले ही वो आदर्श दूसरों के लिए आचरण के योग्य साबित न होते हों। आदर्श वो आगे पढ़ें..

नव वर्ष नए संकल्प साहित्य जन मंथन

नव वर्ष नए संकल्प

नव वर्ष भारतवर्ष में ही नहीं पूरे विश्व में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है मगर नव वर्ष में क्या हमने कभी नव वर्ष के साथ अपनी सोच को बदला,अपने विचारों को अग्रसर किया,अपनी गंदी नियत को साफ किया,बेमतबल के धर्म के नाम पर होने वाले लड़ाई झगड़ों को बंद आगे पढ़ें..

ममता कालिया के उपन्यासों में मध्यवर्गीय जीवन साहित्य जन मंथन

ममता कालिया के उपन्यासों में मध्यवर्गीय जीवन

व्यक्ति या समूह के सामाजिक तथा आर्थिक स्तरों की भिन्नता ही वर्ग निर्धारण का आधार होती है अर्थात एक विशेष प्रकार के सामाजिक और आर्थिक स्तर वाले लोग एक समूह के अंतर्गत आकर एक विशिष्ट वर्ग का निर्माण करते हैं। आज हमारे समाज में उच्चवर्ग और निम्नवर्ग के साथ तीसरा आगे पढ़ें..