एक तुम हो साहित्य जन मंथन

एक तुम हो

गगन पर दो सितारे: एक तुम हो, धरा पर दो चरण हैं: एक तुम हो, ‘त्रिवेणी’ दो नदी हैं! एक तुम हो, हिमालय दो शिखर है: एक तुम हो, रहे साक्षी लहरता सिंधु मेरा, कि भारत हो धरा का बिंदु मेरा । कला के जोड़-सी जग-गुत्थियाँ ये, हृदय के होड़-सी आगे पढ़ें..