आकाशदीप कहानी - जयशंकर प्रसाद साहित्य जन मंथन

आकाशदीप कहानी – जयशंकर प्रसाद

“बंदी!” ”क्या है? सोने दो।” ”मुक्त होना चाहते हो?” ”अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो।” ”फिर अवसर न मिलेगा।” ”बडा शीत है, कहीं से एक कंबल डालकर कोई शीत से मुक्त करता।” ”आंधी की संभावना है। यही एक अवसर है। आज मेरे बंधन शिथिल हैं।” ”तो क्या तुम भी आगे पढ़ें..