रत्नकुमार सांभारिया की कहनी ‘शर्त’ में दलित और संभ्रांत वर्ग साहित्य जन मंथन

रत्नकुमार सांभारिया की कहनी ‘शर्त’ में दलित और संभ्रांत वर्ग

दलित साहित्य के महान सामाजिक क्रांतिकारी एवं वैज्ञानिक विचार के आलोक स्तंभ बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर के शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो के मूलमंत्र की आधारशीला पर रचा गया साहित्य, दलित साहित्य है । भारतीय समाज में ‘जाति’ नामक दीमक लग गई है । जो मनुष्य को मनुष्य आगे पढ़ें..

अज्ञेय कृत ‘एक बूंद सहसा उछली’ में भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति का तुलनात्मक विश्लेषण साहित्य जन मंथन

अज्ञेय कृत ‘एक बूंद सहसा उछली’ में भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति का तुलनात्मक विश्लेषण

यात्रा वृतांत का शुभारंभ भारतेंदु युग से ही माना जाता है, भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘सरयू पार की यात्रा’ , ‘मेंहदावल की यात्रा’ ,’लखनऊ की यात्रा’ आदि लिखकर यात्रा साहित्य का सूत्रपात किया। आधुनिक हिंदी साहित्य में राहुल सांकृत्यायन, अज्ञेय और नागार्जुन को ‘वृहत घुमक्कड़ त्रयी’ कहा गया है। इन्होंने स्वदेश आगे पढ़ें..

त्यागपत्र में चित्रित स्त्री जीवन की समस्याएं साहित्य जन मंथन

त्यागपत्र में चित्रित स्त्री जीवन की समस्याएं

“यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता:। यत्रेतास्तु न पूज्यंते सर्वास्त्रफला: क्रिया।।”१ अर्थात जहां पर स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता रमते हैं और जहां उनकी पूजा नहीं होती वहां सब काम निष्फल होते हैं। प्राचीन काल से ही स्त्री को देवी मानकर पूजा जाता है और उसी स्त्री को आगे पढ़ें..

व्यक्तित्व विकास के सन्दर्भ में दिव्या उपन्यास साहित्य जन मंथन

व्यक्तित्व विकास के सन्दर्भ में दिव्या उपन्यास

साहित्य और कला से बेहतर कोई वस्तु नहीं, जिसके द्वारा मनुष्य के ह्रदय में चेतना जगाकर उसे सही दिशा और दशा प्रदान करने में सक्षम बना सकें| साहित्य संवेदना और संस्कारों का निर्माण करता है| साहित्य एवं भाषा का व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण योगदान है| डॉ. विजयदत्त ने कहा कि- आगे पढ़ें..

'समकालीन साहित्य परिदृश्य' पुस्तक की समीक्षा साहित्य जन मंथन

‘समकालीन साहित्य परिदृश्य’ पुस्तक की समीक्षा

समकालीन साहित्य परिदृश्य डा. मुमताज और संतोष नागरे द्वारा संपादित 40 शोधालेखों का एक ऐसा बहुरंगी समुच्चय है जहाँ एक ही मंच पर अपने सम्पूर्ण रचना समय को समेटने का तत्पर अनुरोध लक्षित होता है । यह आलोचना – ग्रंथ एक साहित्यिक माल या मल्टीकाम्प्लेक्स है जो माल संस्कृति के आगे पढ़ें..

परंपरा और आधुनिकता का द्वंद्व और संस्कार उपन्यास साहित्य जन मंथन

परंपरा और आधुनिकता का द्वंद्व और संस्कार उपन्यास

परंपरा अपने आप में एक व्यापक अवधारणा है। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘बिना व्यवधान के श्रृंखला रूप में जारी रहना’ अर्थात परंपरा का सीधा अर्थ यह हुआ कि किसी विषय या उपविषय का ज्ञान बिना किसी परिवर्तन के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ियों में संचारित होना। चाहे तो इसे ऐसे आगे पढ़ें..

घासीराम कोतवाल नाटक का यथार्थ साहित्य जन मंथन

घासीराम कोतवाल नाटक का यथार्थ

मराठी के आधुनिक नाटककारओं में शीर्षस्थ विजय तेंदुलकर अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिष्ठित और महत्वपूर्ण नाटककार हैं। 50 से अधिक नाटकों के रचयिता विजय तेंदुलकर ने अपने कथ्य और शिल्प की नवीनता से निदेशकों और दर्शकों दोनों को बराबर आकर्षित किया, पूरे देश में उनके नाटकों के अनुवाद एवं मंचन आगे पढ़ें..